Sunday 2 September 2012

हिंदी फिल्म की कहानी +हिंदी फिल्म का शीर्षक = आज का भोजपुरी सिनेमा !!!!


         

भोजपुरी सिनेमा अपने चरम पर है . हर सप्ताह एक-दो फिल्म रिलीज हो रही है . देश की बात क्या इसने बिदेशों में भी अपनी जगह बना ली है .लेकिन इससे भोजपुरी सिनेमा का तक़दीर नहीं बदला है ............

बदले भी तो कैसे ? यहाँ हर निर्माता - निर्देशक के पास हिंदी फिल्म की एक चुराई गई कहानी होती है और वो उसी कहानी पर फूहड़ प्रस्तुति के साथ फिल्म बनाते है। कहानी के साथ-साथ अब तो हिंदी फिल्मों शीर्षक भी भोजपुरी फिल्म में बिना किसी झिझक के इस्तमाल होने लगा ह ! जैसे -कालिया ,खून -पसीना ,लावारिस ,हीरो ,अँधा कानून , गंगा जमुना सरस्वती ,डकैत अदि !इन शीर्षक से ये पता ही नहीं चलता है की ये भोजपुरी फिल्म है या हिंदी फिल्म या फिर दब की गई साऊथ की फिल्म ! निर्माता-निर्देशक या तो दर्शकों को धोखा रहे है या फिर खुद को ! भोजपुरी फिल्मों ज्यादातर निर्माता-निर्देशक के पास अपनी खुद की सोच की कमी है शायद ,तभी तो अबतक इनकी कहानी ठाकुर और उसके अत्याचार से आगे नहीं निकली है !हाल में रिलीज एक फिल्म की कहानी का भी यही हाल है, जिसमे हीरो ठाकुर के अत्याचार का बदला लेने के लिए एक आम आदमी कल्लू से कालिया बन जाता है !है ना अमिताभ जी कालिया की कहानी !

आमतोर पर भोजपुरी फिल्म का मतलब बालीवूड के बी और सी ग्रेड मसाला फिल्मों की कहानी , तक़रीबन नंगी , फुदकती और हिंगलिश मुद्रा की भोजपुरी ( जाने कहाँ की ) बोलती हिरोइन का बेड सीन देह दर्शन कराता आइटम

सॉंग और बचकाना फाइट सीन ! ये बात अब सिर्फ हम नहीं कहते दर्शक भी कहने लगे है !

परन्तु मुश्किल ये है की भोजपुरी फिल्म के लोग इस सच्चाई से रूबरू होना नहीं चाहती !उन्हें भ्रम की दुनिया में रहना अच्छा लगता है ! या फिर कह सकते है इण्डस्ट्रीज की चिंता पर जब अपना व्यक्तिगत स्वार्थ हावी हो जाता है तो एक भ्रमजाल का निर्माण हो जाता है !

भोजपुरी फिल्म के निर्माता-निर्देशक जितनी जल्दी हो सके इस भ्रमजाल से निकल जाये की वो जो भी फिल्म बना देंगे वो दर्शक स्वीकार कर लेंगे !वो ये भी कहना छोड़ दे की भोजपुरी फिल्म में यही चलता है ! भोजपुरी निर्माता -निर्देशक सावधान हो जाये और अपनी सोच बदल ले नहीं तो दर्शक उन्हें बदल देगी !क्योंकि उनके सामने "गैंग ऑफ़ बासेपुर " ( इस फिल्म में गाली के प्रयोग से मैं सहमत नहीं ) या "जीना है तो ठोक डाल " जैसी फिल्मों का विकल्प तैयार हो चूका है आगे भी होगा ..................!

3 comments:

  1. फिल्मों ने सोच पर अंकुश लगा दिया .... गन्दगी से ही हम उभरेंगे इस मानसिकता ने भोजपुरी की छवि बदल दी . परिवर्तन बेहतर से विनाश का जल्दी होता है , फिर से सही ढंग से जीने में थोड़ी मशक्कत तो होती है , पर सुबह होती है, उजाला होता है ... बहुत ही अच्छी शुरुआत राजेश जी , बधाई

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  2. Bhojpuri film makers are duping the producers and financers. They do some repeats of Hindi film without much skills in it. A cinema owner told me that he gets 30 to 40 audience in one show even in a new film. The films generally have one or two cabrets by amateur dancers and fight scenes choreographed by amateurs fight masters. Needless to mention that songs do not have any relevance to visuals and generally a poorly cooked story is served to audience in the name of low budget. Godsave Bhojpuri cinema.............

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