क्यों नहीं बनती अच्छी फ़िल्में भोजपुरी में ?
जिसे पुरे परिवार के साथ देखा जा सके ।
अच्छी फिल्म से मेरा मतलब है, जिसमे एक कहानी हो , अच्छी कहानी हो तो और अच्छी बात है ! उस कहानी की प्रस्तुति अच्छी हो । तकनिकी रूप से मजबूत हो । music अच्छा हो और जिसे पुरे परिवार के साथ देखा जा सके ।
अब इस बात पर गौर करे कि आखिर क्या वजह कि सालाना 100फिल्मों के इस मंडी में एक अच्छी फिल्म नहीं बनती ?
हिट या फ्लॉप की बात छोड़ दें ।
देखिये ,जहाँ तक मैं समझता हूँ कि किसी भी भाषा में फिल्म बनाने के लिए उस भाषा का ज्ञान और उससे लगाव होना जरुरी है ।अगर ऐसा नहीं है
तो आप उस भाषा के, वहां की संस्कृति का emotion ही नहीं समझ पायेंगे और तब ऐसी ही फिल्म बनेंगी जैसी
आज बन रही है जिसमे भोजपुरी की महक ही नहीं है । ये तो खांटी मुम्बैया फिल्म
है जिसमे भोजपुरी के नाम पर केवल संवाद और गीत है । संवाद भी ऐसा कि एक ही फिल्म में एक चरित्र आरा की भोजपुरी, दूसरा जोनपुर तो तीसरा बनारस की भोजपुरी बोलता नज़र आता है ।इससे पता चलता है कि director
को भाषा की कोई खास जानकारी नहीं है । ऐसे में आप छेत्रीये भाषा में बनायी गयी फिल्म के साथ इंसाफ ही नहीं कर सकते । ठीक वैसे ही जैसा कि
निर्देशक अशोक तलवार ने अमर साहित्य मैला आँचल पर बनाये गए धारावाहिक (1991) के साथ किया । मैं उस धारावाहिक में था ,वहां हो रहे problem से मैंने जाना कि जिस भाषा में आप फिल्म बनाते है तो आपको उस भाषा
की समझ होनी ही चाहिए ।तभी आप अच्छी script लिख सकते हैं और अच्छी script ही अच्छी फिल्म की बुनियाद है ।
भोजपुरी सिनेमा का दुर्भाग्य ये भी है कि ज्यादातर लोग जो भोजपुरी सिनेमा बनाते है वो भोजपुरिया नहीं है ।
भोजपुरी director भोजपुरी साहित्य को पढने से यहाँ की संस्कृति को समझने से कतराते है या समझना नहीं
चाहते । उन्हें लगता है कि भोजपुरी ही तो बनानी है इसके लिए इतना मेहनत क्यों करें ?
सिनेमा के student होने की वजह से मैंने जाना है कि अच्छी फिल्म बनाने के लिए director को साहित्य को
पढ़ना और देश - दुनिया की फिल्म को देखना चाहिए ।
अब तो रविकिशन भी ये मानते है कि भोजपुरी को यदि बचाना है तो इसके लिए film maker को नयी कहानिओ
पर सोचना होगा और इसके लिए उन्हें साहित्य पढना होगा ।